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हमारी चेतना

मित्रों सर्वप्रथम आप सभी को धन्यवाद् मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए और इन गूढ़ विषयों में रूचि रखने के लिए. आज मेरा विषय है चेतना. बड़ी ही अबूझ पहेली है इस चेतना की. ये चेतना eletromagnetic field की तरह से सम्पूर्ण ब्रहमांड में फैली हुयी है जिसको हमारा दिमाग प्रोसेस करता है. यही एक जानवर को जानवर और एक इन्सान को इन्सान बनाती है.चेतना जिसे हम सोचने समझने की छमता कहते हैं जिसके द्वारा हम किसी परिस्थिति का आंकलन करते हैं किसी परिस्थिति में हम कैसा behave करेंगे ये हमारी चेतना पर निर्भर करता है. हम सभी एक शरीर और सारे अंग एक जैसे ले कर आये हैं लेकिन कोई गणित में कमजोर होता है तो किसी को गणित में बड़ी रूचि आती है ऐसा क्यों ,वजह फिर हमारी चेतना होती है. हमारा दिमाग एक प्रोसेस्सर की तरह काम करता है जैसे कम्पुटर में पेंटियम वन से लेकर पेंटियम फोर तक के प्रोसेस्सर बन चुके है वैसे हमारा दिमागी प्रोसेस्सर भी विभिन्न category के प्रोसेस्सर की फॉर्म में होता है. ये चेतना चूँकि सम्पूर्ण ब्रहमांड में फैली हुयी है इसी लिए दिमाग की मजबूरी है की उसे प्रोसेस करना. ये प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार की

WAVE FORM OF WORLD

perceprtion is reality. कहीं पढ़ा तो थोडा अजीब लगा लेकिन अध्यात्म और विज्ञान की गहराईयों में उतरने के बाद पता चला की ये बात अटल सत्य है. यानी आप जो सोचते हैं वही सत्य है यानी आप दुनिया को बदल सकते हैं. आप सामने खड़े आदमी को जानवर बना सकते हैं. हैं न बड़ी अजीब बात. आईये इस बात की थोड़ी गहराई में चलते हैं.विज्ञानं ने अपने प्रयोगों के द्वारा इस मजेदार बात को सिद्ध किया .वैज्ञानिकों ने एक बड़ी दीवार में दो खड़ी लाइनों के बराबर छेद किये और दीवार के उस पार एक फोटो फिल्म लगा दी. फिर दीवार के इस पार से electrons की एक बौछार की गयी . जिन लोगों ने विज्ञान पढ़ा होगा उन्हें पता होगा कि इस प्रयोग को slit experiment कहते हैं. मैं अपने दूसरे पाठकों को इसे थोडा विस्तार से बताते हुए कहना चाहूँगा की ये प्रयोग ठीक उसी तरह है जैसे किसी चादर के परदे पर अगर हम टोर्च का प्रकाश डालें और उस परदे में छेद हो तो परदे के बाहर सिर्फ उतनी ही रौशनी निकलेगी जहाँ छेद होगा. slit experiment ठीक इसी प्रकार का एक प्रयोग है. जिसमे टोर्च की रौशनी के बजाये electrons का प्रयोग किया जाता है. तो ऐसे प्रयोग में electrons ने कण की तर
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हमारी आपकी चर्चा समाचार पत्र में .

BIO CLOCK & MENTAL PROCESSOR

आज हम चर्चा करेंगे बायोलाजिकल क्लोक और मेंटल प्रोसेसर की। हमारे शरीर में इन दोनों के बीच में अद्भुत सम्नाजस्य होता है। बायोलोजिकल क्लोक अपने आस पास की गतिविधियाँ ,तापमान आदि चीजों को देख कर चलती है। आपने आस पास होने वाले परिवर्तनों पर उसकी पैनी नजर हमेशा बनी रहती है। हमारे शरीर के बूढे होने से लेकर अन्य सारी घटनाओ के लिए यही जिममेदार होती है.आप ने कई बार महसूस किया होगा कि बिना किसी पूर्व सूचना के आप को घटनाओ का आभास हो जाता है। आप सुबह बिना किसी अलारम के मनचाहे टाइम पर जग जाते हैं .निश्चित समय पर आपके दांत उग आते हैं आपके बाल सफ़ेद हो जाते हैं आप के चेहरे पे झुरियां पड़ने लगती हैं.ये सारे संदेश वही क्लोक आप पास के परिवेश को देख कर दिमाग को देती हैं। यानि मेंटल प्रोसेसर को देती है। दिमाग सम्बंधित शारीरिक विभाग को हारमोन के द्बारा संदेश देता है कि अब शरीर को जवान कर दो अब बाल उगा दो अब बूढा कर दो इत्यादि।आप बिना घड़ी देखे टाइम का अनुमान लेते हैं। ये सारी चीजें अनजाने में वही क्लोक कर रही होती है।चूँकि हम इस धरती के स्पिन से उसकी घूर्णन गति से जुड़े हुए हैं। अतः हम भी उसी प्रकार गति कर रहे

TIME AND SPACE

टाइम और स्पेस की कहानियाँ आपने सब ने खूब सुनी होंगी। आज चलिए मैं आपको एक नए दृष्टिकोण से इसकी परिभाषा समझाता हूँ। विज्ञानं और फिलोसफी का बड़ा गहरा सम्बन्ध है। किंतु विज्ञानं कहीं न कहीं मात खा जाता है। विज्ञानं लाख कोशिश कर ले किंतु इस मायावी जगत में हजारों ऐसी चीजें हैं जिनका वो सिर्फ़ प्रमाण दे सकता है जिनका भौतिक रूप दिखाने में वो असफल है। ऊर्जा, करेंट,हवा, प्राण,एटम, इत्यादि हजारों ऐसी चीजें हैं जहाँ पर विज्ञानं केवल प्रमाण दे सकता है। इसी क्रम में आइंस्टीन ने टाइम को एक विमा बताया यानि टाइम भी हर आदमी का अलग अलग होता है और इसे हम छोटा बड़ा कर सकते हैं।जैसे सुख का समय तुंरत कट जाता है और दुःख का समय देर से कटता है.समय वही लेकिन दो आदमियों के लिए अलग अलग . आइन्स्टीन ने इसे प्रयोगों के मध्यम से सिद्ध कर दिखाया था।अब बात आती है एक पूर्णतया नए विचार की अर्थात स्पेस की। जी हाँ स्पेस भी हर एक आदमी का अलग अलग होता। यही विचार धारा किसी मनीषी ने इस प्रकार दी थी की इस दुनिया में हजारों ब्रम्हांड हैं । बिल्कुल सत्य है.क्योंकि हर एक व्यक्ति अपने स्पेस से एक ब्रम्हांड की रचना कर रहा होता है। आप

शरीर के प्रकार

शरीर तीन प्रकार का होता है। सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर , मायावी शरीर। आपने सूक्ष्म शरीर के बारे में सुना होगा। सूक्ष्म शरीर यानी आत्मा इसकी गहराईयों में जाने में इसके कई प्रकार और मिलते हैं। मन,प्राण,चेतना इत्यादि इसमे शामिल होते हैं। कारण शरीर जिसमें आपके हाथ पैर नाक कान इत्यादि आतें हैं। जिसके अस्वथय होने पर आपको डॉक्टर की आवश्यकता पड़ती है। एक स्वस्थ जीवन शैली अपना कर आप इसको स्वस्थ रख सकते हैं।तीसरा प्रकार होता है मायावी शरीर का। मायावी शरीर वो होता है जिस रूप में आपको दुनिया देखती है। आपकी वाह्य अवस्था। आपका पद,आपका रूप रंग इत्यादि .ये सब चीजें आपके मायावी शरीर के अंतर्गत आती हैं। आप किसी के पिता हो सकते हैं आप किसी के पति हो सकते हैं,ऐसे हजारों रूप आपके होते हैं । हर रूप के व्यक्ति के लिए आपकी अलग अलग छवि हो सकती है। व्यक्ति अपनी मूल भूत छवियों से अलग हटकर जीवन भर अपनी मायावी छवि को संतुष्ट करने में लगा रहता है। और यही मुख्या वजह है किसी भी व्यक्ति के परेशान होने की। आप कभी इस बात का जश्न नही मानते की आपने आज एक दिन और स्वस्थ गुजारा। आप अपनी नयी गाड़ी का जश्न मनाते हैं, आप आपने प्रमो

चयन की स्वतंत्रता

चयन की स्वतंत्रता आप भले ही न माने की हम सब आपस में इंटर कनेक्टेड हैं लेकिन विज्ञानं ये मान चुका है। जी हाँ । ये हम सब जानते हैं की प्रत्येक अणू के मूलभूत परमाणु आपस में जोड़े में होते हैं। जो आपस में एक दूसरे के विपरीत अपने अक्ष गति कर रहे होते हैं यानि यदि एक +१/२ दिशा में गति कर रहा है तो दूसरा -१/२ दिशा में गति कर रहा होगा। अब वैज्ञानिको ने उपकरणों की मदद से उन दोनों को अलग अलग कर दिया और उन दोनों को लाखों किलो मीटर दूर कर दिया फ़िर किस प्रकार से उन्होंने एक मूलभूत परमाणु की गति बदल दी यानि जो +१/२ दिशा में गति कर रहा था उसको -१/२ दिशा में गति करवानी शुरू कर दी। उन्होंने एक चमत्कारिक परिणाम देखा की दूसरे मूलभूत परमाणु ने जो उनके कक्ष से काफ़ी दूर था उसने स्वत अपने अक्ष पर अपनी गति बदल दी। ये अभी ज्ञात नही हो पाया है की इतनी दूर उस दूसरे परमाणु को कैसे पता चला की मेरे जोडीदार ने अपनी गति की दिशा बदल दी है। जब इतने मूलभूत परमाणु आपस में संवाद रखते है तो उनसे बनी दुनिया भी निश्चित ही आपस में संवाद रखती होगी। क्यों आपको अचानक कोई चीज अच्छी लगने लगती है, क्यों किसी से अचानक प्यार हो जाता।

प्रकाश और विचार

प्रकाश की एक की किरण सूरज से चलती है इस सृष्टि की किसी चीज पर गिरती है और परावर्तित होकर हमारी आंखों तक आती है आँखें दिमाग को संदेश भेजती हैं और दिमाग अपने अनुभव के आधार पर उस चीज को पहचान लेता है।एक विचार परम ब्रह्म से चलता है किसी पदार्थ पर गिरता है परावर्तित होकर हमारे मस्तिष्क तक आता है दिमाग उस विचार को विश्लेषित करता है और अपने अनुभवों के आधार पर हमें कोई काम करने की प्रेरणा देता है।दो एक जैसी घटनाएं एक को हम मान लेते है क्योंकि वैज्ञानिकों ने इसे प्रयोग द्वारा सिद्ध कर दिया । दूसरे को हम नही मानते क्योंकि वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कभी काम ही नही किया । पहली घटना के रास्ते में बहुत सी भौतिक चीजें पड़ती हैं जिसका भौतिक सत्यापन एवं विश्लेषण किया जा सकता है। और वैज्ञानिकों को अपनी उपलब्धि गिनवाने के लिए भौतिक विश्लेषण आसान जान पड़ता है. आप आंख देख सकते है आप चीजों को देख सकते हैं। किंतु दूसरी घटना के रास्ते में कुछ भी भौतिक नही है और जो भौतिक है यानी दिमाग वो इंतना जटिल है कि वैज्ञानिकों ने आज तक उस से तौबा कर रखी है। और उससे किनारा काटते आयें हैं। इस दिशा में हमारे ऋषि मुनियों ने का