हमारी चेतना

मित्रों सर्वप्रथम आप सभी को धन्यवाद् मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए और इन गूढ़ विषयों में रूचि रखने के लिए. आज मेरा विषय है चेतना. बड़ी ही अबूझ पहेली है इस चेतना की. ये चेतना eletromagnetic field की तरह से सम्पूर्ण ब्रहमांड में फैली हुयी है जिसको हमारा दिमाग प्रोसेस करता है. यही एक जानवर को जानवर और एक इन्सान को इन्सान बनाती है.चेतना जिसे हम सोचने समझने की छमता कहते हैं जिसके द्वारा हम किसी परिस्थिति का आंकलन करते हैं किसी परिस्थिति में हम कैसा behave करेंगे ये हमारी चेतना पर निर्भर करता है. हम सभी एक शरीर और सारे अंग एक जैसे ले कर आये हैं लेकिन कोई गणित में कमजोर होता है तो किसी को गणित में बड़ी रूचि आती है ऐसा क्यों ,वजह फिर हमारी चेतना होती है. हमारा दिमाग एक प्रोसेस्सर की तरह काम करता है जैसे कम्पुटर में पेंटियम वन से लेकर पेंटियम फोर तक के प्रोसेस्सर बन चुके है वैसे हमारा दिमागी प्रोसेस्सर भी विभिन्न category के प्रोसेस्सर की फॉर्म में होता है. ये चेतना चूँकि सम्पूर्ण ब्रहमांड में फैली हुयी है इसी लिए दिमाग की मजबूरी है की उसे प्रोसेस करना. ये प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार की है जैसे एक बल्ब में हम अगर बिजली प्रवाहित करें तो उसकी मजबूरी हैं जलना वो जले बिना नहीं रह सकता है. उसकी बनावट ही ऐसी है. हमारे भौतिक जगत में हर electric device का अपना एक काम है करेंट भेजने पर उसे वो काम करना ही पड़ता है. टी वी का अपना काम है, पंखे का अपना काम . इसी चीज को हम अगर जीवित प्रानिओं में समझे तो हर आदमी की दिमागी बनावट उसे एक विशेष काम के लिए बनी है और दिमाग में चेतना आते ही उसे वो काम करना ही पड़ता है.वो अपनी चेतना के अनुसार अपने शरीर के अंगों को आदेश देता है और अंग उसी प्रकार काम करना शुरू कर देते हैं. क्या हो अगर मैं आप से कहूँ की आप अपने एक हाथ से अपना दूसरा हाथ काट लें आप कहेंगे की मैं पागल हो गया हूँ.क्योंकि आपकी चेतना सही ठंग से काम कर रही है जबकि जब कोई व्यक्ति गलत चेतना के प्रभाव में आता है तो वो कई गलत निर्णय लेता है जो हम आप सब को बेवकूफी जैसा लग सकता है लेकिन जब कोई व्यक्ति सुसाइड करता है तो उस व्यक्ति का दिमाग उसके शरीर के अंगों को आदेश देता है की जहर खा लो या फिर फांसी लगा लो और बाकी अंग बिना जाने समझे की ये आदेश उन्ही अंगो का अस्तित्व ख़तम कर देगा , वो उस आदेश को मान लेते हैं. यही चेतना का चमत्कार है.दरअसल हम सब किसी दिव्य शक्ति के हांथों की कठपुतलिया हैं. जो हमें अपने संदेशों के आधार पर कार्य करने पर मजबूर करता है.आईये इसे कुछ विस्तार से समझते हैं. किसी कार्य की शुरुआत एक विचार से होती है जो सबसे पहले आपके दिमाग में आता है.फिर दिमाग अपनी चेतना के आधार पर उस विचार को विश्लेषित करता है और शरीर के अंगों को आदेश देता है की इसके अनुरूप कार्य करो .ये कार्य किसी का मर्डर से लेकर किसी की पूजा तक हो सकता है.हमारे शरीर में एक और मजेदार चीज होती है जिसे हम अहंकार कहते हैं. जो हमें बेवकूफ बनाते हुए हमें ये अहसास कराती है की जो भी कार्य हो रहा है वो हम कर रहें हैं जबकि सच्चाई ये है की वो कार्य पूर्व निर्धरित होता है आप सिर्फ उसका पालन कर रहे होते हैं. . हमारे धार्मिक ग्रंथों में एक शब्द आता है जिसे हम धर्म कहते हैं लोगो ने जिसका काफी गलत मतलब निकल कर अर्थ का अनर्थ कर दिया धर्म का मतलब आपकी बेसिक प्रोपर्टी यानी जिस काम के लिए आप इस दुनिया में आये हैं. जैसी आपकी दिमागी संरचना है जैसा आपका मेंटल प्रोसेस्सर है आप वैसा ही काम करेंगे. जैसे सांप का धर्म है डसना वो मजबूर है अपनी चेतना से. वैसे ही उच्च चेतना के स्तर पर हर मानव एक बेसिक प्रोपर्टी लेकर आया है जिसे उस आदमी का धर्म कहते हैं. जैसे एक शराबी चाह कर भी अपना धर्म यानी शराब पीना नहीं छोड़ सकता ये उसका बेसिक धर्म है.तो फिर जब हर आदमी के काम निर्धारित हैं तो वो वही करेगा उसके अलावा वो चाह कर भी अपने मन से कुछ नहीं कर आएगा क्योंकि उसका भविष्य तो निर्धारित होगा. तो जनाब ये बात बिलकुल सही है की हम सबका भविष्य निर्धरित होता है. कुंडली की विधा यही हम को बताती है. आप इस बात की सत्यता की जाँच खुद कुंडली विधा की कुछ किताबें पढ़ कर कर सकते हैं या फिर मुझ से discussion कर सकते हैं. आपको इस विधा से लगेगा की वाकई जीवन पूर्व निर्धारित है. यही वजह थी की कंस को आकाशवाणी हुयी थी आने वाले सालों में इस स्थान पर ऐसा प्राणी तुम्हारा वध करेगा, या फिर भगवान बुद्ध ज्ञानी बनेगे ..छोटे स्तर पर बात करें तो ये ठीक वैसे ही है जैसे की हम एक नीम का बीज बोये और हम आसानी से बता सकते हैं की यहाँ पर तो नीम का पेड़ ही निकलेगा क्योंकि यही सृष्टि है और ये पूर्व निर्धारित है. मशहूर न्यूरो साइंस के वैज्ञानिक रामचन्द्रन ने प्रयोगों के आधार पर ये सिद्ध कर दिखाया है की आपके दिमाग में कोई विचार आने से पहले ही वो बता सकते है की वो विचार हाँ का होगा या न का. यानी किसी स्थिति के प्रति आपकी प्रतिक्रिया पूर्वनिर्धारित होती है. आपको अपने अहंकार से ये लगता है की वो जवाब आप दे रहे हैं जबकि वो जवाब पूर्वनिर्धारित होता है.हमारा सम्पूर्ण ग्रह चेतना से भरा हुआ है हर एक electron को पता है को उसको किस orbit में घूमना है. एक नवजात बच्चे को अपने जनम के बाद तीन महीने तक माँ के दूध में आयरन नहीं मिलता है ये माँ के कुछ शारीरिक परिवर्तनों की वजह से होता है. और इसीलिए बच्चा गर्भ के अंतिम दिनों में माँ के दूध से काफी आयरन खीच कर अपनी बॉडी में स्टोर कर लेता ताकि धरती पर आकर अगले तीन महीनो की खुराक पूरी की जा सके और उसका काम चल सके.ये काम वो बिना जाने समझे किसी अनजानी प्रेरणा से करता है.क्योंकि वो self programmed है.सृष्टि खुद संचालित हो रही है.उसे आपके किसी सहारे या फिर program की जरुरत नहीं है. जीवन पर जड़त्व का गुण सबसे ज्यादा लागू होता है. जड़त्व की परिभाषा और उसकी कार्य प्रणाली आप science द्वारा ठीक से समझ सकते हैं .जबकि अध्य्तात्मिक जीवन में भी ये भौतिक विज्ञान की तरह ही काम कर रहा होता है.निर्जीव चीजें जिन्हें हम जड़ कहते हैं उनमे जड़त्व सबसे ज्यादा होता है. फिर धीरे धीरे चेतन चीजों की तरफ बढ़ने पर हमें दिखाई पड़ता है की उन चीजों में चेतना आ रही है और वो धीरे धीरे improve हो रही आज मानव सबसे उच्च चेतना का प्राणी इस धरती पर है. ये ठीक उसी प्रकार है जब आप potetial energy को kinetic energy में परिवर्तित कर रहे होते है . जब आप किसी चीज को बड़े ध्यान और अभ्यास से करना शुरू करते हैं तो धीरे धीर आपकी स्पीड उस काम को करने में बढ़ने लगी है. जैसे एक टाइप राईटर चलाने वाला बिना अपने की बोर्ड को को देखे हुए आसानी से टाइप कर सकता है वो इतनी गति से टाइप कर रहा होता है की आपको उसका हाथ दिखाई नहीं पड़ रहा होता है लेकिन एक नया आदमीं देख कर भी उस गति से टाइप नहीं कर पायेगा. ठीक इसी प्रकार मार्शल आर्ट्स में जब आप कराटे इत्यादि सीखते हैं तो आप अपनी उर्जा को ध्यान द्वारा एकत्रित करके अपने अंगो पर नियत्रण कर रहे होते हैं और फिर एक समय ऐसा आता है की आप पलक झपकते ही वार कर देते हैं और सामने वाले को पता भी नहीं चल पाता क्योंकि आपके मस्तिस्क ने ध्यान द्वारा आपके हाथ को wave में बदल दिया है. यानी उसने आपकी potential energy को kinetic energy में परिवर्तित कर दिया है.चीन के मशहूर shaolin temple में मार्शल आर्ट की विधा उच्च स्तर पर ध्यान के रूप में सिखाई जाती है . आप जड़त्व के कारण ही, इस कारण शरीर में हैं क्योकि आप ऐसा मान चुके हैं की आप इसे छोड़ नहीं सकते जब आप विश्वास के स्तर पर ये मानना शुरू कर देते हैं की आप खुद को wave form में बदल सकते हैं तभी आपमें परिवर्तन शुरू होता है. अर्थात ध्यान द्वारा आप शरीर को wave में बदल सकते हैं आपका मस्तिष्क इस माया से जड़त्व के कारण ही इस दुनिया से बुरी तरह जुड़ा हुआ है, आप चाहे तो खुद को wave form में परिवर्तित करके कारण शरीर की limited restrictions से मुक्ति पा सकते हैं ,जब आप wave form में बदलते है तो आप अपार शक्तियों के स्वांमी हो जाते हैं.क्योकि wave को भूख प्यास नहीं लगती वो कहीं भी आ जा सकती है वो भी पलक झपकते ही. जो ध्यान की गहन अवस्थाओं में संभव हो जाता है. उस अवस्था को प्राप्त कर लेने के बाद आप dual nature के हो जाते हैं यानी आप अपनी इछा के अनुसार खुद को particle और wave में बदल सकते हैं. इसीलिए हम सब ने सुना होगा की महान सिद्दः पुरुष एक जगह बैठे बैठे कई जगह दिखयी पड़ते हैं. क्योंकि वो ध्यान द्वारा dual nature प्राप्त कर चुके होते हैं wave form प्राप्त कर लेने के बाद आप अपार शक्तियों के स्वामी हो जाते हैं. आप कही भी आ जा सकते हैं और wave की तरह बहुत कुछ कर सकते हैं. जरुरत है सिर्फ ध्यान द्वारा इस मस्तिष्क को साधने की और भरी दुनिया से अपना संपर्क काटने की. क्योंकि जब तक आप बाहरी दुनिया पर अपनी आँखों द्वारा अपनी चेतना डालते रहेंगे और उसे देखते रहेंगे आपकी चेतना इस दुनिया को particle में परिवर्तित करती रहेगी और आप खुद भी particle बने रहेंगे.जैसे ही आप आंख बंद करके ध्यान लगाना शुरू करेंगे आपकी चेतना आपको wave form में बदल देगी.और तभी इस माया के रहस्य आपके समछ जाग्रत होंगे इसे आप जादू कहें, ध्यान कहें या फिर माया कहें, ये आपकी मर्जी.

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