BIO CLOCK & MENTAL PROCESSOR

आज हम चर्चा करेंगे बायोलाजिकल क्लोक और मेंटल प्रोसेसर की। हमारे शरीर में इन दोनों के बीच में अद्भुत सम्नाजस्य होता है। बायोलोजिकल क्लोक अपने आस पास की गतिविधियाँ ,तापमान आदि चीजों को देख कर चलती है। आपने आस पास होने वाले परिवर्तनों पर उसकी पैनी नजर हमेशा बनी रहती है। हमारे शरीर के बूढे होने से लेकर अन्य सारी घटनाओ के लिए यही जिममेदार होती है.आप ने कई बार महसूस किया होगा कि बिना किसी पूर्व सूचना के आप को घटनाओ का आभास हो जाता है। आप सुबह बिना किसी अलारम के मनचाहे टाइम पर जग जाते हैं .निश्चित समय पर आपके दांत उग आते हैं आपके बाल सफ़ेद हो जाते हैं आप के चेहरे पे झुरियां पड़ने लगती हैं.ये सारे संदेश वही क्लोक आप पास के परिवेश को देख कर दिमाग को देती हैं। यानि मेंटल प्रोसेसर को देती है। दिमाग सम्बंधित शारीरिक विभाग को हारमोन के द्बारा संदेश देता है कि अब शरीर को जवान कर दो अब बाल उगा दो अब बूढा कर दो इत्यादि।आप बिना घड़ी देखे टाइम का अनुमान लेते हैं। ये सारी चीजें अनजाने में वही क्लोक कर रही होती है।चूँकि हम इस धरती के स्पिन से उसकी घूर्णन गति से जुड़े हुए हैं। अतः हम भी उसी प्रकार गति कर रहे हैं। अतैव हम इस रेफेरेंस फ्रेम के अभिन्न अंग हैं। अतः इस रेफेरेंस फ्रेम की सारे नियम हम पर उसी प्रकार लागू होंगे। यदि हम अपना रेफेरेंस फ्रेम बदल ले तो हमारी बायोलोजिकल क्लोक का रोटेशन भी बदल जाएगा.और वो हमारे दिमाग यानि मेंटल प्रोसेसर को भिन्न संदेश देने लगेगी.मान लें की अभी हमारी धरती पर २४ घंटे का एक रोटेशन होता है.अब हम किसी ऐसे ग्रह पर चले जाए जहाँ का रोटेशन २४० घंटे का हो तो ये क्लोक उसी प्रकार अपने आप को एडजस्ट कर के दिमाग पर संदेश भेजना शुरू करेगी। किंतु ये रोटेशन का परिवर्तन काफी कष्टकारी हो सकता है क्योंकि सदियों से हमारे जींस इस रोटेशन के आदी हो चुके हैं । हम लगता है की हम स्थिर हैं जबकि हम सदियों से काफी तेजी से रोटेट कर रहे हैं। जब हम २४० घंटे वाले रेफेरेंस फ्रेम में चले जायेंगे तो हमारी उम्र भी १० गुना बढ़ जायेगी क्योंकि मेंटेल प्रोसेसर उसी तरह से शारीरिक हारमोन को संदेश देगा की धीमे धीमे बूढे हो। यही कांसेप्ट ब्रह्मा जी की आयु के लिया लागू होता है।अब बात करते हैं योग द्वारा आयु बढ़ने की। किसी प्रकार यदि हम मेटल प्रोसेसर और इस क्लोक के बीच का सम्बन्ध समाप्त कर दें तो दिमाग बेवकूफ बन जाएगा उसे समय या आस पास की गतिविधियों का पता समय के अनुसार नही चल पायेगा। हम अपनी आयु के बीते हुए ५० साल को यदि अपने दिमाग को ५ साल बताएं तो वो शरीर में वृधि ५ साल की ही करेगा । और हम कई सौ साल तक जीवन जी सकतें है। ध्यान की गहन अवस्थाओं में जब आपका बाहरी दुनिया से सम्बन्ध कट जाता है तो बायोलोजिकल क्लोक को बाहरी दुनिया के संदेश मिलना बंद हो जाते हैं। आस पास के परिवर्तन , प्राकृतिक बदलाव को महसूस करने में वो असफल होने लगती है नतीजा दिमाग तक सही संदेश नही पहुँच पाटा और वो संदेश के इन्तेजार में शारीरिक बदलावों को सुस्त कर देता है। यही प्रक्रिया है जिससे योगी लोग अपनी उम्र कई सव सालों तक बढ़ा लेते थे। ये भ्रान्ति कई लोगो मैं है की समय स्थिर है जबकि समय एक विमा है dimension हैं जो अलग अलग लोगो के लिए अलग अलग निर्धारित हो सकता है।

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