WAVE FORM OF WORLD

perceprtion is reality. कहीं पढ़ा तो थोडा अजीब लगा लेकिन अध्यात्म और विज्ञान की गहराईयों में उतरने के बाद पता चला की ये बात अटल सत्य है. यानी आप जो सोचते हैं वही सत्य है यानी आप दुनिया को बदल सकते हैं. आप सामने खड़े आदमी को जानवर बना सकते हैं. हैं न बड़ी अजीब बात. आईये इस बात की थोड़ी गहराई में चलते हैं.विज्ञानं ने अपने प्रयोगों के द्वारा इस मजेदार बात को सिद्ध किया .वैज्ञानिकों ने एक बड़ी दीवार में दो खड़ी लाइनों के बराबर छेद किये और दीवार के उस पार एक फोटो फिल्म लगा दी. फिर दीवार के इस पार से electrons की एक बौछार की गयी . जिन लोगों ने विज्ञान पढ़ा होगा उन्हें पता होगा कि इस प्रयोग को slit experiment कहते हैं. मैं अपने दूसरे पाठकों को इसे थोडा विस्तार से बताते हुए कहना चाहूँगा की ये प्रयोग ठीक उसी तरह है जैसे किसी चादर के परदे पर अगर हम टोर्च का प्रकाश डालें और उस परदे में छेद हो तो परदे के बाहर सिर्फ उतनी ही रौशनी निकलेगी जहाँ छेद होगा. slit experiment ठीक इसी प्रकार का एक प्रयोग है. जिसमे टोर्च की रौशनी के बजाये electrons का प्रयोग किया जाता है. तो ऐसे प्रयोग में electrons ने कण की तरह behave किया और खाली वो दरारों में से निकल पाए .नतीजा दीवार के उस पार फोटो फिल्म पर दो खड़ी लाइनों की फोटो प्राप्त हुयी. अब यही प्रयोग दुबारा किया गया इस बार सब चीजें एक जैसी थी बस इस बार प्रयोग स्थल पर कोई वैज्ञानिक नहीं मौजूद था. यानि वैज्ञानिकों की अनुपस्थिति में .नतीजे बड़े चौकाने वाले निकले. इस बार electrons ने पहले के बिलकुल उलट wave की तरह behave करना शुरू कर दिया और वो न सिर्फ दरार बल्कि पूरी की पूरी दीवार पार करके उस पार फोटो फिल्म तक पहुंच गए.और पूरी फोटो फिल्म को एक्सपोज कर दिया. दूसरी भाषा में कहें तो टोर्च की रौशनी पूरी चादर के बाहर निकल गयी .यानी आपके देखने से electrons कण में बदल गए और जब उन पर किसी की दृष्टि नहीं पड़ रही होती है तो वो wave की तरह behave करते हैं. इसी से मिलता जुलता प्रयोग हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत है. जो ये कहता है की आप एक समय में किसी electrons की स्थिति और वेग दोनों एक साथ नहीं ज्ञात कर सकते हैं. क्योंकि आपकी दृष्टि ही उसे particle बनाती है और आप उसकी स्थिति ज्ञात कर पाते हैं. अन्यथा वो wave की तरह इस संसार में विचरण करता रहता है.चूंकि ये सारी दुनिया electrons से बनी ह्युई है इसीलिए इसी सिद्धांत को थोडा और आगे बढ़ाएं तो हमें ये चमत्कारिक चीज भी पता चलती है कि जितनी दुनिया पर हमारी दृष्टि पड़ती है खाली उतनी दुनिया ही particle फॉर्म में आती है बाकी दुनिया wave फॉर्म में रहती.और यकीन मानिये ये सच है. चूंकि हमारा मस्तिष्क जिन बातों के अनुसार ढल जाता है उनके इतर सोचने में उसे अत्यधिक दिक्कत होती है.इसीलिए हमें हमेशा दुनिया particle फॉर्म में दिखती है जबकि हकीकत ये है कि हम जिधर देखते हैं वही हमें particle फॉर्म में जीवित दुनिया दिखाई पड़ती है अर्थात इस बात का दूसरा पहलू ये है कि हमारी दृष्टि ही दुनिया को जीवित करती है या उन्हें particle फॉर्म में परिवर्तित करती है.हमें गर्मी की तपती दोपहर में दूर सड़क पर पानी दिखने का धोखा होता है जिसे english में miraj या फिर हिंदी में मृगतृष्णा बोलते हैं . आप लाख कोशिश कर ले लेकिन आपको हमेशा ये धोखा दिखाई देगा ये और बात है की विज्ञानं ने हमें इस धोखे की असलियत बता दी और हम इस बात को मानने लगे की जमीन की सतह से गर्म हवा के उपर उठने से आँखों को ऐसा धोखा होता है. .ठीक इसी प्रकार से दुनिया का wave फॉर्म आपको कभी नहीं दिखाई देगा क्योंकि आप जहाँ भी नजर डालेंगे वहीँ आपको दुनिया particle फॉर्म में दिखाई पड़ेगी. आपकी नजरें या फिर आपकी दृष्टि दुनिया को particle फॉर्म में बदल देती है. दरअसल आपकी नजरें चेतना से भरी होती हैं. आप किसी व्यक्ति की सिर्फ ऑंखें देख कर उसके खुश होने या फिर गुस्स्सा होने के बारें में बता सकते हैं. जबकि वो व्यक्ति आपसे काफी दूर खड़ा होता है. बिना उसके बोले या फिर उसे छुए आप उसकी मनः स्थिति के बारें में कैसे जान लेते हैं.ये चेतना का संचार ही है जो उसकी आँखों से आपकी आँखों तक पहुँचता है. इस चेतना को परिल्छित करके आप उसे काफी ताकतवर बना सकते हैं. इसी सिद्धांत पर पुराने ऋषि मुनि पहले अपनी निगाहें टेढ़ी करके किसी को जला देते थे. या फिर अपना मनचाहा काम करवा लेते थे. चेतना शक्ति को किसी point पर एकत्र करके आप उसे काफी ताकतवर बना सकते हैं जो ध्यान द्वारा संभव है. ध्यान वस्तुतः किसी भी point पर आप अपनी ऑंखें एकत्रित करते हैं. या फिर अपनी ऑंखें बंद करके किसी बिंदु पर एकत्रित करते हैं. लेकिन चेतना का स्तोत्र एक ही होता है. जो आपकी निगाहों के उपर भृकुटी में स्थित होता है जिसे त्रिनेत्र भी बोलते हैं.तिलक लगाने की परिपाटी का मूल उद्देश्य भी यही से आया है. अक्युप्रेसुर द्वारा आप उस बिदु को लगातार दबा कर त्रिनेत्र को जाग्रत करते हैं. जिसे लोग तिलक लगाना भी कह सकते हैं. विज्ञानं ने ये सिद्ध कर दिया है की ध्यान की गहन अवस्थाओं में दिमाग की इस पार्ट की गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं.यानी त्रिनेत्र की परिकल्पना भी एक दम सत्य है.ध्यान की गहन अवस्थाओं में दिमाग के बाकी पार्ट सुस्त पड़ जातें हैं जबकि इस त्रिनेत्र वाले भाग के न्युरोंस सक्रिय होने लगते हैं. ध्यान के सच्चे ज्ञानी भगवान् बुद्ध ने इस प्रक्रिया पर काफी काम किया और उन्हें इसके परिणाम भी प्राप्त हुए.अपनी मूल भूत जरूरतों को त्याग कर यानी भूख, प्यास ,काम इत्यादि को त्याग कर जब आप जीवन को देखते हैं तो आपको असली जीवन दिखाई पड़ता है जो wave फॉर्म में हैं,.

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